महासमुंद : बसना की सुरंगी नदी हमारा प्राकृतिक धरोहर, हमारी जिम्मेदारी
फिरोज खान संभाग प्रमुख रायपुर
Tue, Dec 2, 2025

भारत की सभ्यता सदियों से नदियों के किनारे ही पनपी है। हर नदी केवल जलधारा नहीं, बल्कि संस्कृति, अर्थव्यवस्था, आस्था और जीवन का आधार रही है। उसी परंपरा में छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले की बसना नगरी को भी एक अनुपम सौभाग्य प्राप्त है — यहाँ से सटी हुई सुरंगी नदी बहती है, जो इतिहास, धार्मिक मान्यताओं और प्राकृतिक सौंदर्य की धरोहर है।
सुरंगी नदी का इतिहास और महत्व
सुरगी नदी का उद्गम वर्तमान ग्राम सलडीही को माना जाता है। बरसात के दिनों में यह नदी अपने पूरे वेग से बहती है और आसपास की खेती, पेयजल तथा निस्तार कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
यह नदी कुडेकेल , बसुंला,दूधिपाली,सोनामुंदी, मनकी, अतरला, तोरेसिंघा ,बलोदा ,टीभूपाली से सीधे उड़ीसा के देवदरहा में जाकर ओंग नदी में मिल जाती है ।
कभी यह नदी ऋषि-मुनियों का तपोस्थल रही है, जहाँ साधकों ने ध्यान और साधना की। इसका धार्मिक सम्मान क्षेत्रवासियों के हृदय में आज भी गहराई से बसा है।
फुलझर अंचल के कुछ बुजुर्गों का कहना है की ग्राम लमकेनी जगत परिवार का एक देव इस नदी में जो बरसात भरी नदी में कभी कभार दिख जाता है । इस नदी फुलझर राज के ऐतिहासिक कथाओं में वर्णन है । इस फुलझर राज का देवलहा नदी भी कहते हैं।
लगभग 1985 से 1988 के मध्य परसोकोल चौक के पास नदी में पुल बनने से आवागमन सरल हुआ और नदी के दोनों किनारों के गांव एवं मंदीर देवालय भी हैं पुल बनने के पश्चात इस क्षेत्र के गांवों के लोगों का संपर्क बेहतर हुआ।
यह नदी ने वर्षों से बसना और सरायपाली एवं आसपास के गांवों को जल, रोजगार और उपजाऊ खेत देकर समृद्ध बनाया है।
इस बात को समाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार कल्याण महासंघ मीडीया प्रभारी दीपक जगत ने बसना विधायक डाॅ संपत अग्रवाल से चर्चा की जिसमें विधायक ने जल्दी एनीकेट निर्माण एवं सुरंगी के जिर्णोधार के लिए बात कही ।
जिसने फुलझर अंचल को जीवन दिया आज वही सुरंगी नदी संकट में है~
धीरे-धीरे लगातार उपेक्षा, अवैध गतिविधियों और जागरूकता के अभाव के कारण नदी का अस्तित्व खतरे में है
1. अवैध रेत खनन
अवैध रेत परिवहन ने नदी का स्वरूप बिगाड़ दिया है। लगातार रेत निकालने से नदी की गहराई, चौड़ाई और प्रवाह पर बुरा प्रभाव पड़ा है।
2. अवैध कब्जे और निर्माण
नदी किनारे सीमेंट और लोहे छड़ की अवैध संरचनाएँ, खेत बनाकर कब्जा—इन सबने नदी की चौड़ाई कम कर दी है। कटाव बढ़ने से पेड़-पौधे गिर रहे हैं और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है।
3. जलस्तर का गिरना
बसना विधानसभा क्षेत्र में भूजल स्तर पहले ही काफी नीचे जा चुका है। नदी, तालाब, कुएँ जैसी प्राकृतिक जलस्रोत कम होने तथा अंधाधुंध ट्यूबवेल खुदाई से स्थिति और खराब होती जा रही है।
4. साफ-सफाई और जनजागरूकता का अभाव
नदी में गंदगी का बढ़ना, पूजा-सामग्री का बिना सोच-समझ के बहाना, वन्यजीवों , जंतुओं का घटता निवास—ये सब नदी को धीरे-धीरे “जीवित जलधारा” से सूखी पड़ती धरोहर बना रहे हैं।
समाधान भी हमारे हाथों में है~
अगर देश की प्रमुख नदियाँ—गंगा, नर्मदा, महानदी—घाटों और आरती परंपराओं से संरक्षित की जा सकती हैं, तो सुरगी नदी भी नया जीवन पा सकती है।
1. सुरंगी नदी घाट का निर्माण
यदि बसना में भी गंगा-नर्मदा की तरह सुरगी आरती, सुंदर घाट, प्रकाश सज्जा और पूजा स्थल बने—
तो नदी का धार्मिक महत्व बढ़ेगा और लोग इसे अपना मानकर साफ-सफाई पर ध्यान देंगे।
2. नदी किनारे वृक्षारोपण
दोनों किनारों पर बड़े पैमाने पर पेड़ लगाकर कटाव रोका जा सकता है। इससे हरियाली भी बढ़ेगी और भूजल स्तर सुधार में मदद मिलेगी।
3. अवैध कब्जों को हटाना
प्रशासन को आवश्यक कदम उठाकर नदी की जमीन को मुक्त कराना होगा ताकि नदी अपने प्राकृतिक स्वरूप में बह सके।
4. सामाजिक और जनभागीदारी कार्यक्रम
स्कूल–कॉलजों में नदी संरक्षण जागरूकता नागरिक समूहों द्वारा नियमित सफाई अभियान व्यापारियों, किसानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की सहभागिता नदी मित्र मंडल का गठन
5. रेत खनन पर सख्त निगरानी
रेत के अवैध उत्खनन को रोकना नदी संरक्षण का सबसे महत्वपूर्ण कदम है।
सुरगी नदी बचेगी, तो बसना का भविष्य बचेगा~
यह नदी केवल पानी की धारा नहीं—बल्कि बसना क्षेत्र की आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय रीढ़ है।यदि हम आज इसे नहीं बचाएंगे, तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी हमारे बच्चे हमसे पूछेंगे—
जब नदी खतरे में थी, तब आपने क्या किया?इसलिए आज ही, अभी से जिम्मेदारी लें—
पानी बचाएँ
नदी बचाएँ
रेत बचाएँ
वृक्ष बचाएँ
बसना का क्षेत्र का सौभाग्य:~
सुरगी नदी के किनारे बसे गांव आज भी कृषि, पशुपालन और धार्मिक गतिविधियों से लाभान्वित होते हैं। नदी के पुनर्जीवन से यहाँ का जलस्तर सुधरेगा, किसानों की चिंताएँ कम होंगी और प्रकृति फिर से समृद्ध होगी।
समय आ गया है: सुरगी नदी के लिए एकजुट हों बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि, किसान, व्यापारी और प्रशासन—सभी को मिलकर इस नदी को संरक्षित करना ही होगा सुरगी नदी बचेगी,
तो पर्यावरण बचेगा,कृषि बचेगी,
भविष्य बचेगा,और बसना की पहचान भी बचेगी।
आइए, सुरगी नदी को जीवनदान दें।
संकलन - दीपक जगत, समाजिक कार्यकर्ता बसना (कायतपाली)
Tags :
विज्ञापन
विज्ञापन
जरूरी खबरें
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन