लेखिका सुनीला सराफ के उपन्यास श्यामली का हुआ विमोचन
सागर। मानवीय संवेदनाओं का बहुत जीवंत व प्रभावी चित्रण है उपन्यास श्यामली। लेखिका ने समाज में व्याप्त अच्छाइयों और बुराइयों को बहुत अच्छे से समेटा है! सुनीला जी के इस उपन्यास में उनकी मेहनत, प्रतिभा और लेखन क्षमता स्पष्ट रूप से झलक रही है। इसे पढ़कर आँखों में आँसू आ जाते हैं। कला साहित्य संस्कृति और भाषा के बाद लिए समर्पित नगर की प्रतिष्ठित संस्था श्यामलम् और हिन्दी साहित्य सृजन संघ संस्था के सह-आयोजन से रविवार को दीपक सभागार सिविल लाइंस में आयोजित लेखिका सुनीला सराफ की नवमी कृति उपन्यास “श्यामली” के विमोचन अवसर पर मुख्य अतिथि की आसंदी से दैनिक आचरण की प्रबंध संपादक, विदुषी वक्ता निधि जैन ने अपने वक्तव्य में कही। उन्होंने कहा कि उपन्यास को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे लेखिका ने इसके एक- एक पात्र को स्वयं जिया हो ! लगता है हम कोई चलचित्र देख रहे हों और हमारे आस-
पड़ोस का ही कोई घटनाक्रम हो।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ (सुश्री) शरद सिंह ने
अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है,यह कहा जाता है। इसलिए यदि समाज को साहित्य में प्रतिबिंबित करना है तो उसके लिए समाज को समझना जरूरी है और सामाजिक उपन्यास लिखने के लिए जरूरी है समाज को पढ़ना। मुझे प्रसन्नता है कि सुनीला सराफ ने अपने पहले उपन्यास “श्यामली” में ही समाज की बारीकियां को प्रस्तुत करके अपनी क्षमता को सिद्ध कर दिया है। वे एक संवेदनशील रचनाकार हैं तथा पारिवारिक रिश्तों से कथा बुनने की कला उनमें है। *श्यामलम संस्था ने हमेशा नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहित किया है, यह आज के संवेदनहीन होते समय में बहुत बड़ी बात है।*
श्यामली उपन्यास की समीक्षा करते हुए समालोचक डॉ. लक्ष्मी पाण्डेय ने कहा जीवन में दुःख तो हमेशा रहेंगे किसी न किसी रूप में।हमें इनके साथ सामंजस्य बिठाते हुए प्रसन्नता से जीने की आदत डालनी होगी। यह पुस्तक मर्मस्पर्शी यथार्थवादी सामाजिक उपन्यास है। जिसमें तीन पीढ़ियों के बीच स्त्री जीवन की करुणाजनक स्थितियों को दर्शाया गया है।
वरिष्ठ कहानीकार और समीक्षक निरंजना जैन ने कहा कि ‘इंसान जो जीता है, वही सीता है’ इस कहावत के अनुसार, सुनीला सराफ जी ने अपने जीवन के अनुभवों को सहेजकर ‘श्यामली’ जैसे सुगठित पारिवारिक और रोचक उपन्यास का सृजन किया।
अपने प्रथम उपन्यास के विमोचन पर लेखिका सुनीला सर्राफ ने कहा -इस उपन्यास की कहानी मानवीय गतिविधियों एवं सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों के विविध आयामों को लेकर गुज़री है ,अतीत व वर्तमान के टकराव को खुलकर अनुगूँजित करतीं है जीवन के यथार्थ व अपने आस पास देखे, महसूस किए गए यथार्थ का चित्रण वास्तविक अंदाज़ में करने की मेरी कोशिश है । उन्होंने कहा कि उपन्यास लेखन के लिए डॉ.सुरेश आचार्य, डॉ.शरद सिंह और श्यामलम् अध्यक्ष उमा कान्त मिश्र का हमेशा मुझे प्रोत्साहन मिलता रहा और आज ये उपन्यास श्यामली आप के करकमलों में है।
कार्यक्रम का प्रारंभ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के पूजन-अर्चन एवं श्रीमती सरिता सोनी द्वारा की गई मधुर एवं प्रभावी सरस्वती वंदना के गायन से हुआ। श्यामलम् सचिव कपिल बैसाखिया,कोषाध्यक्ष हरि शुक्ला,डॉ.चंचला दवे,
ज्योति झुड़ेले,नंदनी चौधरी,पी एन मिश्रा ने अतिथि स्वागत किया। श्यामलम् के सह-सचिव संतोष पाठक ने स्वागत भाषण दिया।
मंचासीन अतिथियों एवं श्यामलम् द्वारा उपन्यास श्यामली का विमोचन किए जाने के पश्चात् लेखिका श्रीमती सुनीला सराफ का अभिनंदन शाल, श्रीफल, पुष्प गुच्छ भेंट कर किया गया। अभिनंदन पत्र का वाचन कवि मुकेश तिवारी ने किया। कार्यक्रम का व्यवस्थित एवं प्रभावी संचालन प्राध्यापक डॉ. अमर जैन ने किया तथा श्यामलम् के कार्यकारी सदस्य रमाकांत शास्त्री द्वारा आभार व्यक्त किया गया।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में नगर के बौद्धिक वर्ग की उपस्थिति उल्लेखनीय रही जिनमें डॉ.विजय लक्ष्मी दुबे, डॉ कविता शुक्ला,अनीता पाली, सुमन झुडेले,निधि यादव,डॉ.पूर्वा जैन,संध्या सरवटे,नम्रता फुसकेले,शोभा सर्राफ़,रश्मि साहू ,ममता भूरिया,प्रिया सर्राफ़, उषा बर्मन, अंजलि सर्वटे,अर्चना प्यासी, श्रीमती रविंद्र,
एलएन चौरसिया, डॉ गजाधर सागर,एस एम सीरोठिया, डॉ राजेश दुबे ,उमाकांत मिश्र,आरके तिवारी, टी आर त्रिपाठी, हरिसिंह ठाकुर,डॉ अनिल जैन, रमेश दुबे, पूरन सिंह राजपूत, केएल तिवारी,पीआर मलैया,आशीष ज्योतिषी, डॉ आर आर पांडे, अशोक तिवारी अलख, श्रवण श्रीवास्तव, शिवनारायण सैनी,पैट्रिस फुस्केले,अभिनंदन दीक्षित,डॉ नलिन जैन,डॉ नरेंद्र प्यासी,आरसी चौकसे, महेंद्र खरे, राजेश केसरी, रविंद्र दुबे, अमित चौबे, डॉ अतुल श्रीवास्तव, डॉ सर्वेश्वर उपाध्याय, आनंद मंगल बोहरे, उमाशंकर रावत, सौरभ दुबे, प्रांजल सराफ आदि के नाम शामिल हैं।