महात्मा गांधी और भगत सिंह, दोनों ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे, लेकिन उनके दृष्टिकोण और उपायों में अंतर था। भगत सिंह ने अपनी जान की आहुति दी, जबकि गांधी जी ने अपने अहिंसात्मक सिद्धांतों के पक्षपाती रूप में अपनाया। इस समझौते के बावजूद, क्यों नहीं रोकी गांधी जी ने भगत सिंह की फांसी?
अश्विनी कुमार | दक्ष
9मार्च 2024
भगत सिंह की फांसी:
भगत सिंह, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर नायकों में से एक थे।
उनकी शूरवीरता और आत्मबलिदान ने उन्हें एक महान योद्धा के रूप में उभारा। हालांकि, उनकी फांसी ने देशवासियों को गहरे शोक में डाल दिया।
गांधी और सज़ा माफ़ी:
महात्मा गांधी ने अपने जीवन में अहिंसा और सज़ा माफ़ी के मौलिक सिद्धांतों को अपनाया था। उनका यह मानना था कि शांति और सद्भाव से ही समस्याओं का समाधान हो सकता है।
इरविन समझौते के बावजूद, क्यों नहीं रोकी गांधी जी ने भगत सिंह की फांसी?
भगत सिंह, राजनीतिक गतिविधियों के क्षेत्र में सक्रिय थे और उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी। इरविन समझौते के बावजूद, गांधी जी ने उनकी फांसी को रोकने का प्रयास नहीं किया।
इसमें कई कारण शामिल थे, जैसे कि दोनों के दृष्टिकोणों में अंतर, उनके विचारशीलता की विषय में विभिन्नता, और गांधी जी की अपनी सामंजस्य रखने की कोशिश।
गांधी जी का विरोध:
गांधी जी ने भगत सिंह जैसे उग्र राजनेताओं के विरुद्ध अपना विरोध जताया था।
उन्हें अहिंसा और सत्याग्रह का पालन करने का मार्ग सही लगता था, जबकि भगत सिंह ने उच्च स्तर की शक्ति और संघर्ष को अपनाया। यह विरोध गांधी जी की निर्णायक सोच को प्रभावित करता था।
गांधीजी का नज़रिया:
गांधी जी ने भगत सिंह को एक ‘आत्महत्यारी’ के रूप में देखा था और उन्होंने अपनी सामंजस्यवादी दृष्टिकोण को बनाए रखने का प्रयास किया। उन्हें लगता था कि भगत सिंह के प्रति सज़ा योजना के पीछे उनके राजनीतिक विचारों का प्रभाव था।
विचारशीलता का अंतर:
गांधी जी और भगत सिंह दोनों ही विचारशील व्यक्तित्व थे, लेकिन उनके दृष्टिकोण में विभिन्नता थी।
गांधी जी का आत्मनिर्भरता का सिद्धांत और भगत सिंह का संघर्ष भरा उत्साह, इन दोनों के बीच संघर्ष जीवनभर रहा।