विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि कोरोना वायरस को लेकर हर्ड इम्युनिटी पैदा होने की संभावना नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक अधिक से अधिक यह हो सकता है कि कोरोना वायरस संक्रमण एक ऐसी बीमारी हो जाए, जिसे संभालना अभी की तुलना में ज्यादा आसान हो जाएगा। गौरतलब है कि बहुत से देश हर्ड इम्युनिटी के भरोसे इस रोग के काबू में आ जाने की उम्मीद पर चल रहे हैं। हर्ड इम्युनिटी का मतलब वैसी स्थिति होता है, जब एक खास सीमा से अधिक लोगों के संक्रमित हो जाने के बाद मानव समाज उस संक्रमण के मुकाबले के लिए सामूहिक रूप से सक्षम हो जाता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक कई नए वायरसों के साथ इंसान ने जीने की क्षमता विकसित कर ली है।

कोरोना वायरस के मामले में ऐसा होगा या नहीं, यह कई पहलुओं पर निर्भर करेगा। अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि एक बार कोविड-19 वायरस संक्रमित होने के बाद किसी व्यक्ति के दोबारा संक्रमित होने की कितनी आशंका रहती है। साथ ही वायरस के म्यूटेशन और वैक्सीन की प्रभावशीलता के पहलू भी अहम हैं। इनके बारे में पूरी स्थिति साफ होने के बाद ही कोई ठोस अंदाजा लगाया जा सकेगा।
[America] व्हाइट हाउस के मुख्य चिकित्सा सलाहकार एंथनी फाउची ने अमेरिकी मीडिया से कहा- ‘लोग भ्रम में हैं। वे सोचते हैं कि जब तक रहस्यमय हर्ड इम्युनिटी विकसित नहीं हो जाती, तब तक संक्रमण पर काबू नहीं पाया जा सकेगा। इसीलिए हमने अब हर्ड इम्युनिटी शब्द का उसके पुराने अर्थ में इस्तेमाल करना छोड़ दिया है। जब पर्याप्त संख्या में लोग टीका लगवा लेंगे, तभी संक्रमण की संख्या घटेगी।’ उधर, अटलांटा स्थित एमरी यूनिवर्सिटी में इवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट रुस्तम आंतिया ने वेबसाइट एक्सियोस.कॉम से कहा- ‘इस बात की संभावना नहीं है कि वायरस कहीं चला जाएगा। लेकिन हम कुछ ऐसा करना चाहते हैं, जिससे यह एक हलके संक्रमण का कारण बन कर रह जाए।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोई महामारी हमेशा बनी नहीं रहती। लेकिन उनका अंत इसलिए नहीं होता है कि वायरस खत्म या गायब हो जाता है। बल्कि इसलिए होता कि वायरस का जनसंख्या के बीच असर स्थिर हो जाता है। वह पृष्ठभूमि में स्थायी रूप से बना रहता है और कभी-कभी स्थानीय रूप से उसके संक्रमण का प्रसार होता है।
इसी रूप में पहले से चार कोरोना वायरस जनसंख्या के बीच मौजूद रहे हैं। इनकी वजह से लोग जुकाम, इन्फ्लूएंजा और मौसमी बुखार आदि से पीड़ित होते रहते हैं। कोरोना वायरस का पिछला रूप सार्स के रूप में 2003 में सामने आया था। उसकी संक्रामक क्षमता 2019 में सामने आए कोविड-19 से कम थी। इसलिए अलग-अलग देशों ने उस पर जल्दी काबू पा लिया। उसके पहले जिस एक वायरस के संक्रमण को खत्म करने में मदद मिली थी, वह चेचक का है। व्यापक रूप से टीकाकरण के जरिए उस पर काबू पाया गया। दुनिया पोलियो के वायरस के संक्रमण पर भी स्थायी विजय हासिल करने के करीब पहुंच चुकी है।
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि व्यापक टीकाकरण के बावजूद ये संभावना नहीं है कि कोविड-19 वायरस पर चेचक या पोलियो जैसी विजय हासिल होगी। इसके बदले इसकी स्थिति मिजिल्स (छोटी माता) या येलो फीवर जैसी हो सकती है। इन दोनों बीमारियों का उन्मूलन नहीं हो सका है। इसलिए ये जरूरी है कि सरकारें कोविड-19 संक्रमण के मुकाबले की चुनौती को ध्यान में रखते हुए अपनी स्वास्थ्य नीति बनाएं। वरना, लंबे समय तक आज जैसी हालत पैदा होने की आशंका कायम रहेगी।
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